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शब्बीर तेरे घर सा घर बार नहीं मिलता मनक़बत पाक - मोह़र्रम स्पेशल

Sunday, 9 July 2023
शब्बीर तेरे घर सा घर बार नहीं मिलता मनक़बत पाक
शब्बीर तेरे घर सा घर बार नहीं मिलता

शब्बीर तेरे घर सा घर बार नहीं मिलता
नाना की तरह तेरे दिलदार नहीं मिलता।

ढाला है उन्हें रब ने अनवार के सांचे में
आ़बिद की तरह कोई बीमार नहीं मिलता।

ख़ैबर का क़िला जिसने है फतह़ किया पल में
उसे शेरे ख़ुदा जैसा दमदार नहीं मिलता।

बाज़ू भी कटे लेकिन हिम्मत नहीं हारी है
अ़ब्बासे वफ़ा जैसा सालार नहीं मिलता।

दरबार दिला दे जो ख़ुतबे से ही ज़ालिम का
उसे सानिये ज़हरा सा किरदार नहीं मिलता।

अर्ज़क को किया टुकड़े तलवार से ख़ुद जिसने
उसे इब्ने हसन जैसा फनकार नहीं मिलता।

साक़ी ने यही कह कर क़िर्तासो क़लम रखा
शब्बीर सा दुनिया में सरदार नहीं मिलता।

शायर: गुलाम ग़ौस साक़ी तनवीरी
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Mushaahid Raza

मेरा नाम मुशाहिद रज़ा है और मैं इस ब्लॉग का संस्थापक हूं। इस ब्लॉग पर मैं नई नई हम्द,नात, मनक़बत लिरिक्स पोस्ट करता हूं, क्योंकि मुझे लोगों की हेल्प करना अच्छा लगता है।

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