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| करेंगे नबी जो करम धीरे धीरे |
करेंगे नबी जो करम धीरे धीरे
तो मिट जायेंगे सारे ग़म धीरे धीरे
यह सुल्तानें दीं की मुक़्द्दस ज़मीं है
यहां रख के चलना क़दम धीरे धीरे
पढ़ूँ नाअ़्त शाहे ज़मन धीरे धीरे
निखर जायेंगे फ़िकरो फ़न धीरे धीरे
ग़ुलामें नबी गोर में सो रहा है
फ़रिश्ते हटायें कफ़न धीरे धीरे
सरे अर्श हर नअ़्त ख़्वाने नबी का
धुलायें गी हूरें दहन धीरे धीरे
सुनायेंगे परवाज़ नअ़्ते शहे दीं
अक़ीदत में होके मगन धीरे धीरे
शायर: ह़ैदर परवाज़ कलकत्तवी
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