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इश्क़ ए नबी सीने में बसाना सबके बस की बात नहीं |
इश्क़ ए नबी सीने में बसाना सबके बस की बात नहीं
यादे नबी में अश्क बहाना सबके बस की बात नहीं।
ईसा की ठोकर से यारों बोल उठे मुर्दे लेकिन
कन्कर से कलमा पढ़वाना सबके बस की बात नहीं।
मह़शर में जब प्यास के मारे सबकी ज़बाने बाहर हों
जामे कौसर भर के पिलाना सबके बस की बात नहीं।
चारों तरफ से नजदी वहाबी बीच में मेरा तन्हा रज़ा
ऐसे में ईमान बचाना सबके बस की बात नहीं।
शाने रिसालत देखकर हैदर कहने लगे थे सहबा में
डूबा सूरज वापस लाना सबके बस की बात नहीं।
हाफ़िज़, क़ारी, मुफ़्ती, आलिम बन सकते हैं सब लेकिन
आला हज़रत बन के दिखाना सबके बस की बात नहीं।
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