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दोनों आलम की हर एक शै को बनाने वाले |
दोनों आलम की हर एक शै को बनाने वाले
तेरी क़ुदरत पर हैं कुर्बान ज़माने वाले।
नाज़ महबूब की उम्मत के उठाने वाले
तेरे आईन पर चलते हैं ज़माने वाले।
बाहरी जुल्म से तूने ही निकला मुझको
ऐ अंधेरों को उजालों से सजाने वाले।
तेरी रह़मत है बड़ी मेरे अ़मल के आगे
मुझ गुनहगार के इ़सियां को छुपाने वाले।
तलअ़ते हैं तूने आता की है चमन ज़ारो को
राहे पुरख़ार को फूलों से सजाने वाले।
तेरे अफ़ज़ाल पे नाज़ां है हमारी हस्ती
गर्दिश ए वक़्त के पंजे से छुड़ाने वाले।
तेरे इकरामो इ़नायत से कहां है महरूम
तेरे दरवाज़े की ज़ंजीर हिलाने वाले।
तूने अफ़्कार को अल्फाज़ो मआनी बख़्शे
ज़हनो दिल को मेरे नूरानी बनाने वाले।
हसरतें लाखों हों मायूस कहां रहते हैं
तेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाने वाले।
तूने ख़ालिद को अता की है सुख़न की दौलत
फिक्र को सोंच को ज़ूबार बनाने वाले।
शायर: खालिद नदीम बदायूनी
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