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तुम्हारे दर पे जाने की अगर तदबीर हो जाए नात शरीफ़ - शहबाज़ रज़ा कलकत्तवी

Tuesday, 4 July 2023
तुम्हारे दर पे जाने की अगर तदबीर हो जाए नात शरीफ़
तुम्हारे दर पे जाने की अगर तदबीर हो जाए

तुम्हारे दर पे जाने की अगर तदबीर हो जाए
सुरैया से कहीं ऊंची मेरी तक़दीर हो जाए।

लुआ़बे पाक की बरकत से पानी हो गया मीठा
अगर तुम चाह को तो ज़हर भी अक्सीर हो जाए।

भला किसी शान से अल्लाह ने तुमको नवाज़ा है
अगर तुम बोल दो क़ुरान की तफ्सीर हो जाए।

यही है आरज़ू वापस पलट कर हम ना आएंगे
अगर पूरी हमारे ख़्वाब की ताबीर हो जाए।

बलाओं यह ज़रा सोचो तुम्हारा ह़ाल क्या होगा
हमारी आह को हासिल अगर तासीर हो जाए।

तेरी उंगली की जुंबिश से गया सूरज पलट आया
तेरा पाकर इशारा शाख़ भी शमशीर हो जाए।

मदीना, मौत से पहले बुला लीजिए इसे आक़ा
कहीं ऐसा ना हो शहबाज़ से ताख़ीर हो जाए।

शायर: शहबाज़ रज़ा कलकत्तवी
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Mushaahid Raza

मेरा नाम मुशाहिद रज़ा है और मैं इस ब्लॉग का संस्थापक हूं। इस ब्लॉग पर मैं नई नई हम्द,नात, मनक़बत लिरिक्स पोस्ट करता हूं, क्योंकि मुझे लोगों की हेल्प करना अच्छा लगता है।

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